सुभाष के झा, अपने आदर्श ‘लता मंगेशकर ‘जी का चित्रण करते हुए

लता जी सिर्फ, सुरों से सजा, एक खूबसूरत बाग़ ही नहीं है |बाहर से वो एक ऐसी व्यक्तित्व प्रतीत होती है, जिन्होंने इतनी ज्यादा ख्याति अर्जित की है, की अब वो एक निर्वाणिक अवस्था मे पहुँच गयी है, जहां उन्हें सातो जन्म का परमानन्द प्राप्त हो |
सुभाष के झा, अपने आदर्श 'लता मंगेशकर 'जी का चित्रण करते हुए 30371

एक ऐसी आवाज़ जिसमे स्वयं भगवान् बसते है |उनकी ख़ास दिनों को याद करते है, उन्होंने अपना 75वा जन्मदिन, बड़े ही धूम धाम से आयोजित किया था, जहां पहुंचे हर छोटे बड़े गायको ने, उनके गीतों को अपने आवाज़ मे गाया, उस आवाज़ के श्रद्धांजलि के रूप मे, जो सिर्फ एक आवाज़ ही नहीं,अपितु एक सुरीली आगाज़ है, हिंदी सिनेमा जगत मे, सुरों की बेहतरी का |

’74’ हो ’75’, क्या फर्क पड़ता है? उन्होंने मुझे बताया की जब उन्हें एक दफा मौका मिला, उन्हें अत्यधिक स्नेह देने वाले नये कलाकारों को देखने का, जिन्होंने उनके ही गीतों को काफी बुरी तरीके से गाया, मानो गीतों को अपाहिज कर डाला हो, तकरीबन 4 घंटे तक, वो उन्हें सुनती रही |उन्होंने एक दबी सी मुस्कुराहट के साथ, आत्मविश्लेषण कर,वह लम्हा भी जीत लिया था |

लता जी सिर्फ, सुरों से सजा, एक खूबसूरत बाग़ ही नहीं है |बाहर से वो एक ऐसी व्यक्तित्व प्रतीत होती है, जिन्होंने इतनी ज्यादा ख्याति अर्जित की है, की अब वो एक निर्वाणिक अवस्था मे पहुँच गयी है, जहां उन्हें सातो जन्म का परमानन्द प्राप्त हो |’मैं एक खुशहाल व्यक्तित्व हूँ, कुछ भी मुझे परेशान नहीं करता, और ना ही कभी किया है |यहां तक की जब मैं अपने जीवन के सबसे साधारण स्तर से गुजर रही थी, जहां शुरुआत मे काफी संघर्ष भी करना पड़ा मैं अपने आप से संतुष्ट थी |उन दिनों मैं बाहर स्टूडियों मे गाती थी, और घर वापस आते ही अपनी गुड़ियों से खेलती ‘, उन्होंने मुझे ये बातें कुछ दिनों पहले बताई है |

उनका विश्वास जितना आसान नहीं |पर अगर आपने अपने व्यवहार से उनके ह्रदय को छू लिया, तो वो आपकी हो गयी समझो |अकांशी संगीतकार, जो बड़े नामी गिरामी संगीतकार मे तब्दील हो गए, सिर्फ उन्ही की बदौलत से, जिन्हे एक वक़्त ‘फ़िल्म जगत की एकल महिला ‘के नाम से भी बुलाया गया, सिर्फ परेशान करने हेतु, और इतना ही नहीं अत्यंत बेकार प्रतिभाओं को भी बेवजह बढ़ावा दिया जा रहा था, ताकि उन्हें नीचा दिखाया जा सके |

शंकर जयकिशन और बाद मे उनके शिष्य हुए, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, इस गुनाह के उदाहरण है |
पहली जोड़ी झूठ की आस्था पाल, दीदी की आवाज़ की बदौलत बड़ा मोकाम हासिल किया, जिसके पश्चात, अचानक ‘शंकर ‘ के अंदर एक नये जूनून की शुरुआत हुई, जिसका आधार एक पूर्ण बेसुरे गायक की वजह से हुआ, उसी पे आधारित भी था |’वो लता मंगेशकर से कही बेहतर है ‘उन्होंने निर्माताओं को ऐसा बताया, और कुछ विशेष नहीं |उन्होंने शीघ्र ही लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का रुख किया |

सब कुछ ठीक ही था, और नयी संगीतकार की जोड़ी, ने धरती की पूजा अर्चना की और समझा उनकी’ दीदी ‘ अब चली गयी… तब लक्ष्मीजी (भगवान् उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें ) ने लता की नकलची आवाज़ को, अत्यंत मनमोहक बताया, और बड़ी बेशर्मी से उस झूठी कोकिला की आवाज़ को देश भर मे फैलाया, और इस प्रकार से संगीतकारो के फ़िल्मी यात्रा को नष्ट कर डाला |

फिर एक झूमते संगीतकार, जिन्हे स्वर्ण आभूषण पहनने का बेहद शौक था, आये और ऐसे गीतों का निर्माण किया, जो हवा के साथ फुर्र हो गए |कुछ वषों पहले की घटना है, वो लता जी के नीज सचिव से बोल बैठे ‘अब वो पहले वाली लता मंगेशकर नहीं रही, चीज़े बदल रही है ‘|

चीजें नहीं बदली थी, बस लोग बदल गए थे |स्वयंसेवा मे मगरूर, फ़िल्म जगत के दौलत के पुजारी,’गान ‘के साथ हो लिए, यह सोच की दीदी अब चली गयी | करीब दो दशकों तक उनके द्वारा ये लगातार कोशिशे की गयी की, स्वर कोकिला,की जादुई आवाज़ को दबा दिया जाए |मुझे अभी भी स्पष्ट याद है, 30 वर्षों पहले, एक समीक्षक ने लिखा की, 45 साल की लता मंगेशकर, अपनी आवाज़, 15 साल की डिंपल कपाड़िया को देने जा रही है , बॉबी फ़िल्म के लिए, जो सफल नहीं होंगी |

माननीय निराशावादी समीक्षक -किसने बनाया डिंपल को? राज कपूर ने, या लता जी के गानो ने, जैसे -झूठ बोले कव्वा काटे और चाभी खो जाए |इस पहेली को सुलझाने मे दीदी के प्रशंसकों को सैकड़ो वर्ष लग जाएंगे, या फिर उनकी वृहद् समृद्धि का फैलाव फ़िल्म जगत मे |जब वो कुछ फ़िल्मकारों की पहुँच से दूर हो गयी, तब उन्होंने दीदी की कार्बन कॉपी का ईजाद किया -जिसमे पहली थी -सुमन कल्याणपुर (जिन्होंने मोहम्मद रफ़ी के साथ कई हिट गीत दिए, जैसे आज कल तेरे मेरे प्यार के चर्चे और आज हूँ ना आये बालमा सावन बीता जाए, आदि, वजह सिर्फ एक ही थी, की असली कोकिला दो वर्षो से बाहर थी ),फिर चन्द्राणी मुख़र्जी और उनके बाद अनुराधा पौडवाल और फिर अलका याग्निक

एक आवाज़ की नक़ल, जिसे हटा पाना ऐसा है मानो ताजमहल या सोनिआ गांधी की चढ़ी हुई भौ|
जब धर्मेश दर्शन अपनी फ़िल्म धड़कन मे,उनकी आवाज़ ना बिखरवा पाए,ऊन्होने, उन्हें रेडियो पे प्रसारित भी रही गीत, ‘तू मेरे साथ रहेगा मुन्ने ‘मे पाया जो फ़िल्म ‘त्रिशूल ‘का है और ‘शर्मीला टैगोर ‘पर फिल्माया गया है | लता मंगेशकर का सबसे उत्साहित प्रशंशक, पुरे फ़िल्म उद्योग मे है तो वो है ‘संजय लीला भंसाली ‘|मैं रोज उन्हें 3-4 घंटे सुनता हूँ, वो अन्धकार रूपी समय मे, किसी प्रकाश स्तम्भ से आती हुई रौशनी की तरह है|उनकी गीत मेरे ह्रदय के बेहद करीब है |मैंने जितने भी गाने बनाये है, वो सब, कही ना कही से लता जी को भावभीन श्रद्धांजलि है |फ़िल्म ‘देवदास ‘मे ‘हमेशा तुमको चाहा’ उनकी बेमिसाल गीत ‘सुनियो जी ‘ जो लेकिन फ़िल्म की है, से प्रभावित थी |मुझे ऐसा महसूस होता है, की वो इस देश की सबसे महानतम गायक है |हमने अभी उनके योगदान को, गिनती करना, मात्र भी शुरू नहीं किया है |

हर युग मे उन्होंने अपनी बेहतरीन गायकी, मधुर आवाज़, और दया की मिसाल रक्खी है |मैं तीन लोगों की पूजा करता हूँ -अमिताभ बच्चन, बिरजू महाराज, और लता मंगेशकर | इस जगत मे सबसे सरल सत्य कुछ है तो वो है लता जी की अविश्वसनीय, अभूतपूर्व, मधुर आवाज़, और कुछ नहीं |पर उनकी कला और बुद्धिमता को समझ पाना, या परखना, इतना सरल नहीं | मैंने उन्हें बताया की कैसे कत्थक प्रतिपादक पंडित बीरजु महाराज को उन्होंने, रास लीला आधारित एक गीत ‘मोहे पनघट पे नन्दलाल ‘जो की फ़िल्म मुगले आज़म से है, एक दुर्लभ मिश्रण है, अपने अपने क्षेत्रों मे महारत, के मेल का |

‘मुझे खुद नहीं मालूम, मैंने क्या किया है उस गाने मे ‘कह खिलखिला हस पड़ी स्वर साम्राज्ञी |लोग मुझसे पूछते है, आप ये कैसे कर लेती है, ख़ास कर वो उतार चढाव,गानो मे ? मैं खुलकर बोलती हूँ, इन सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं |मैं बस जाती हूँ, और अपनी पूरी क्षमता से गाती हूँ, बाकी सब भगवान् के हाथों मे है’ ऐसा कहती है स्वर की देवी | बहुत से लोग जिनमे मैं भी शामिल हूँ, ऐसा विस्वास करते है, की, लता जी की आवाज़ मे भगवान् बसते है, जो अपना रास्ता, उनके गले से होकर, बाहर की तरफ, एक दिव्य शक्ति के रूप मे, आती सी प्रतीत होती है |जब आप उन्हें कोई प्यार भरा गीत, गाते सुनते है, जैसे, ‘लग जा गले ‘(वो कौन थी ), ‘रैना बीती जाए ‘(अमर प्रेम ), या ‘मैं जाऊं नहीं पिया से मिलन कैसे होये रे (चाँद ग्रहण ),आपको आश्चर्य होगा,की आखिर इतना प्रेम किसके लिए उभरता है उनका|क्या यह उनके लिए है, जिन्होंने यह दुनिया बनायीं है |

मुझे महसूस होता है, की हम सब यहाँ एक उद्देश्य से है,ताकि उन्हें श्रोता की कमी ना हो, ऐसा कहना है, संजय भंसाली, जी का |
कितनी सदियाँ और युग बीत गए|75 वर्ष की उम्र मे भी, उनकी आवाज़ की दैविक क्षमता,पतन को सिरे से नकारती है | यश चोपड़ा, जो अपनी ‘दीदी ‘ से उतना ही प्यार करते थे, जितना की मैं, ने उन्हें और उनके चाहने वालो को, उनकी जन्मदिन, के मौके पे, ‘वीर जारा ‘के रूप मे बड़ा उपहार दिया, जो कोई और नहीं दे सकता |
उन्हें अपने तथाकथित मित्रों और सुभचिन्तको, से ऐसी सलाह मिली थी, की उन्हें ‘प्रीती जिनटा’ के लिए, दूसरी आवाज़ खोजनी चाहिए | लेकिन चोपड़ा साहब अपने बात पे अटल थे”जब तक मैं और वो जीवित है, सिर्फ लता जी ही मेरे फिल्मों के लिए गाएंगी “|

हर एक अदाकारा, मधुबाला और मीणा कुमारी, से ऐश्वर्या राय और प्रीती जिनटा, सबों की तर्रक्की और उत्थान, लता जी की आवाज़ की दें है |उनकी गीतों के बदौलत, कई अदाकाराओ ने अपने जीवन मे, ख़ास मोकाम हासिल किया |मधुबाला यानी ‘आएगा आएगा ‘(महल ),प्यार किया तो डरना क्या (मुगले आज़म )…..शर्मीला टैगोर यानी ‘रैना बीती जाए ‘(अमर प्रेम )और ‘कुछ दिल ने कहा ‘(अनुपमा )…..मधुबाला, मीणा कुमारी, और हेमा मालिनी ने तो ज़िद कर रक्खी थी की, उस के सारे गाने सिर्फ लता जी ही गाएंगी |आदाकारा को ऐसा महसूस होता था की वो आ चुकी है, जब लता जी अपना गीत उनके लिए गाती थी, कहती है, जया बच्चन,जिनके लिए स्वर कोकिला ने दर्ज़नो,कभी ना भूलने वाले अमर गीतों को गाया |

अब वो आवाज़ कहाँ जा सकती है? ईमानदारी से, मुझे नहीं पता मैं, इतनी दूर कैसे चला आया, तो फिर मैं यह कैसे बता सकता हूँ, की जाऊंगा कहा? मैं भगवान् के दिखाए राह पर चलता हूँ, जहां वो ले चले |मैं उनके दिखाए रास्ते पे सवाल नहीं करता | 90 वर्ष के उम्र मे भी, लता मंगेशकर, प्रभावशाली है, इतना की आज भी गाने रिकॉर्ड किये जा सकते है |औरों के लिए….. मैं थोड़ा पीछे जाना चाहता हूँ, उस भविष्यवाणी की तरफ,जो पहले के लता भक्त, और संगीतकार रह चुके ‘सज्जाद हूसैन ‘ने दीदी के विषय मे कहे थे, की, ‘लता गाती है, और दुसरे बस चिल्लाते है ‘|
आज भी जब वो कभी किसी सामाजिक जश्न मे आती है, तो एक चुप्पी सी छा जाती है, असीम आदर की वजह से |हर कोई थम जाता है, उनकी आत्मा से आ रही मधुर संगीत को सुनने हेतु |

सुभाष के झा: सुभाष के. झा पटना, बिहार से रिश्ता रखने वाले एक अनुभवी भारतीय फिल्म समीक्षक और पत्रकार हैं। वह वर्तमान में टीवी चैनलों जी न्यूज और न्यूज 18 इंडिया के अलावा प्रमुख दैनिक द टाइम्स ऑफ इंडिया, फ़र्स्टपोस्ट, डेक्कन क्रॉनिकल और डीएनए न्यूज़ के साथ फिल्म समीक्षक हैं।